गुजरात-हिमाचल के साथ-साथ पांच राज्यों की छह विधानसभा और एक लोकसभा सीट पर हुए उपचुनाव के नतीजे भी आ गए हैं। इनमें जिन नतीजों की सबसे ज्यादा चर्चा है उनमें बिहार की कुढ़नी सीट भी शामिल है। यहां से भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी केदार प्रसाद गुप्ता ने जीत हासिल की है। महागठबंधन मनोज सिंह को हार का सामना करना पड़ा।
ऐसे में सवाल है कि आखिर कैसे जदयू, राजद, कांग्रेस के गठबंधन को अकेले भाजपा ने हरा दिया? बिहार उपचुनाव में भाजपा की जीत के क्या मायने हैं? इस नतीजे ने नीतीश कुमार को क्या संदेश दिया? आइए जानते हैं…
कुढ़नी सीट पर 2020 विधानसभा चुनाव में राजद के अनिल सहनी विधायक चुने गए थे। हाल ही में अनिल सहनी को सजा सुनाई गई है। सहनी को यात्रा भत्ता घोटाला मामले में तीन साल की सजा सुनाई गई थी। जिसकी वजह से उनकी विधानसभा सदस्यता चली गई। इसके बाद कुढ़नी में उपचुनाव हुए। साल 2020 में सहनी ने भाजपा के केदार गुप्ता को करीब 700 वोटों से हराया था। हालांकि, तब राजद के खिलाफ भाजपा और जदयू मिलकर चुनाव लड़े थे।
अब बिहार में जदयू, राजद, कांग्रेस समेत कई दल एकसाथ आ चुके हैं। इसे महागठबंधन नाम दिया गया है। इस उपचुनाव में महागठबंधन की तरफ से जदयू ने मनोज कुमार सिंह को उतारा था, जबकि भाजपा ने अपने पुराने प्रत्याशी केदार प्रसाद गुप्ता पर फिर भरोसा जताया था।
चुनाव में भाजपा के केदार प्रसाद गुप्ता ने महागठबंधन के मनोज गुप्ता को 3,649 मतों से हराया। दूसरे नंबर पर रहे महागठबंधन के प्रत्याशी मनोज कुमार सिंह को 73 हजार 73 वोट मिले। मनोज के लिए खुद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने प्रचार किया था। इसके अलावा राजद और कांग्रेस के भी कई नेताओं ने रैली की थी। इसके बावजूद मनोज चुनाव हार गए।
इसे समझने के लिए हमने बिहार के वरिष्ठ पत्रकार प्रमोद कुमार झा से बात की। उन्होंने कहा, ‘ये नतीजे वाकई में हैरान करने वाले हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि पूरा समीकरण भाजपा के खिलाफ था। इस सीट पर वोटर्स की संख्या करीब तीन लाख है। इनमें 38 हजार कुशवाहा, 25 हजार निषाद, 35 हजार वैश्य, 23 हजार मुस्लिम, 18 हजार भूमिहार, 32 हजार यादव, वोटर्स हैं। इसके अलावा गैर भूमिहार सवर्ण वोटर्स की संख्या 20 हजार और दलित 20 हजार के करीब हैं।’
झा आगे कहते हैं, ‘कुर्मी और कुशवाहा वोटर्स के बीच नीतीश कुमार की अच्छी पैठ मानी जाती है। खुद प्रत्याशी मनोज भी कुशवाहा समाज से ही आते हैं। सीट पर सबसे ज्यादा वोटर्स की संख्या भी कुशवाहा समाज की है। इसके बावजूद महागठबंधन प्रत्याशी की हार और भाजपा की जीत ने सबको चौंका दिया।’
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